उम्र की चादर ओढे , यादों की लाठी िलये,
ग़मों की सर्द हवाओं से बचने , बेठे हे उम्मीदों के िचराग तले !
नयी सुबह के इंतज़ार मे ,
वक़्त की बहती धुप- छांव मे,
कुछ बुझे से कुछ थके से ,
कुछ लाचारी के बोझ तले !
चहरे से झलकती है तन्हाई
दूर-दूर तक नहीं कोई परछाई
कुछ डरे से,कुछ सहमे से,
कुछ बेदर्द ग़मों के दर्द तले !
खामोश िगगाहें तकती हैं राहें,
टूटे िबखरे ख्वावों से कैसे यकीन िदलायें,
कुछ बहके से,कुछ िसमते से,
कुछ मायुशी के गर्त तले !
Tuesday, July 1, 2008
उम्र की चादर ओढे
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