Wednesday, April 30, 2008

True love

This is a true story that happened in Japan.
In order to renovate the house, someone in Japan tore open the wall. Japanese houses normally have a hollow space between the wooden walls. When tearing down the walls, he found that there was a lizard stuck there because a nail from outside was hammered into one of its feet. He saw this, felt pity, and at the same time he was curious. When he checked the nail, turns out, it was nailed 10 years ago when the house was first built.
What happened?
The lizard had survived in such a position for 10 years! In a dark wall partition for 10 years without moving, it is impossible and mind boggling. Then he wondered how this lizard survived for 10 years without moving a single step--since its foot was nailed! So he stopped his work and observed the lizard, what it had been doing, and what and how it had been eating. Later, not knowing from where it came, appeared another lizard, with food in its mouth.
Ahh! He was stunned and at the same time, touched deeply. Another lizard had been feeding the stuck one for the past 10 years... Such love, such a beautiful love! Such love happened with this tiny creature... What can love do? It can do wonders! Love can perform miracles! Just think about it; one lizard had been feeding the other one untiringly for 10 long years, without giving up hope on its partner.
If a small creature like a lizard can love like this...
just imagine how we can love if we try!

Saturday, April 19, 2008

GAZAL

SOCHA NAHE ACCHA BURA, DEKHA SUNA KUCH BHE NAHE
MAANGA KUDA SE RAAT DIN TERE SIVA KUCH BHE NAHE
SOCHA TUJHE,DEKHA TUJHE,CHAAHA TUJHE,POOJA TUJHE
MERI VAFA MERI KATA,TERI KATA KUCH BHE NAHE
JIS PER HAMARI AANKH
NE MOOTI BICHAE RAAT BHER
BHEJA VAHE KAAGAJ USE,HAMNE LIKHA KUCH BHE NAHE
EK SHAAM KE DEHLEEJ PER,BAITHE RAHE WO DER TAK
AANKHON NE KE BAATAIN BAHUT,MUH
SE KAHA KUCH BHE NAHE
AHSAAS KE KHUSBOO KAHAAN,AAWAAZ K JUGNOO KAHAAN
KHAMOSH YAADON K SIVA GHER ME RAHA KUCH BHE NAHE
DO CHAAR DIN KE BAT HAI,DIL KHAAK ME MIL JAAEGAA
JUB AAJ PER KAAGAJ RAKHA,BAAKI BACHA KUCH BHE NAHE

RAAHEN

प्यार के बारे मे मुझे ज़्यादा मालूम तो नही है पर ये बात ज़रूर कह सकता हूँ की प्यार ज़िंदगी मे रंग भर देता है |
जब किसी की ख़ुशी मे अपनी ख़ुशी लगने लगे उसका ग़म अपना दर्द लगे..जिसके होने और ना होने के बीच
ज़िंदगी के मायने बदलने लगे ...जिसे ढूँढने के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ आँखें बंद करना पड़े...या फिर की आख़री
साँस केवल उसकी खातिर बाक़ी रहे ...शायद इसे ही प्यार कहते हैं...
पर प्यार मे शर्तें और बांदिसें नही होती...बस प्यार होता है और ये ज़रूरी नही की जिसे आप चाहें वो आपको मिल ही जाए...
"
प्यार मे सौदा नही "

एक ग़ज़ल है...शायद 'अर्थ' या साथ-साथ पिक्चर का है...इसमे एक ना मिल पाने का दर्द है...
"
क्यूं ज़िंदगी की राह मे मजबूर हो गए
इतने हुए क़रीब की हम दूर हो गए ...
ऐसा नही की हमको कोई भी ख़ुशी नही
लकिन ये ज़िंदगी तो कोई ज़िंदगी नही
क्यूं इसके फ़ैसले हमे मंज़ूर हो गए
इतने हुए क़रीब की हम दूर हो गए ...
पाया तुम्हे तो हम को लगा, तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख्वाब क्यूं गिरे
क्यूं चूर हो गए..
इतने हुए क़रीब की हम दूर हो गए..."

VO KAAGAZ KI KASHTI

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले चीन लो मुजसे मेरी जवानी
मगर मुजको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी ...
मोहल्ले की सबसी निशानी पुरानी
वो बुधिया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों मे परियों का डेरा
वो चेहरे की झुरियौ मे सदियों का फेरा
भुलाए नही भूल सकता है कोए
वो छोटी सी रातें वो लंबी कहानी ....
कड़ी धूप मे अपने घर से निकलना
वो चिड़िया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी मे लड़ना,झगड़ना
वो झूलों से गिरना,वो गिर के सम्हालना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी...
कभी रेत के उँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो लाखों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गुम था ना रिश्तों के बंधन
बड़ी ख़ूसूरत थी वो जिंदगानी...
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश कॅया पानी...

ये ग़ज़ल मेरे पापा मुझे सुनाया करते थे... आज जब वो मेरे साथ नही है" पर वो नही है ऐसा भी नही है" उनकी बातें बहुत याद आती हैं और वे भी...और मुझे अब लगता है ये शायद ग़ज़ल नही बल्कि पूरी जिंदगी है...
हर इंसान अक बार अपने बकपन मे लौटने का तलबगार रहता है...
और ये ग़ज़ल उन सबके लिए है जो पता नही किस मारीचिका के पीछे भाग रहे हैं...

MUJHKO YAKEEN HAI

मुझको यक़ीन है सच कहती थी
जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे cपन के दिन थे
चाँद मे पारियाँ रहती थी ...

एक वो दिन जब अपनो ने भी हुम्से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाकेह्न बोझ हमारा सहती थी ...

एक वो दिन लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थी ...

एक वो दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थी.. मुझको यक़ीन है...

एक वो दिन जब जागी आँखें दीवारों को तक़ती हैं
एक वो दिन जब शामॉं की भी पलकें भोझल होती थी...

AAZAADI


हेलो फ्रेंड्स ...काफी समय से सोच रहा था की देश की दशा के बारे मे कुछ लिखूँ पेर समझ मे नाही रहा था की क्या लिखूँ ,बस आज पढ़ते-पढ़ते आज़ादी के बारे मे पढ़ा...पढ़कर अच्छा भी लगा की हम अपनी आज़ादी के बारे मे बेहद सज़ाग और संजीदा हो गए है... लेकिन ये सोचकर दुख भी हुआ की क्या जिसे हम आज़ादी कह रहे हैं वो सच मे हमारी आज़ादी है...
यार काई तो ऐसे भी हैं जिन्हे स्वतंतत्रता दिवस और गडतंत्रता दिवस मे भी अंतर नही जानते...
और कभी तो पुणयतीथि मे भी ताली बज जाती है...
क्या छोटे या नाही के बराबर कपड़े पहनकर "हरे राम..हरे कृष्णा" कहना आज़ादी है या साधु के भेष मे चरस खीचना आज़ादी है... यार मालूम है की " 8 के.".."या जब मिल बैठेंगे"... इनका मतलब क्या है... लेकिन हम तो आज़ाद हैं...
ये तो हमारे सविधान मे लिखा है की भारत मे हरेक आदमी को अपनी बात रखने का पूरा हक़ है...

फिर क्यूँ सचिन के हेल्मेट मे तिरंगा लगाने पर या की सानिया का तिरंगे के सामने पैर रखने पर हूंगामा खड़ा हो जाता है...
यार हम लाख बुरे सही पर हमे अपने देश और अपने तिरंगे से बेहद प्यार है... वो भी आखिर इंसान ही है उनसे भी गलियाँ हो ही जाती है... लेकिन हम तो हैं खड़े पाव खीचने के लिए... यार हम क्यूँ अपने पड़ोसी की दीवार अपने से उँची होते नाही देखना चाहते...
ये मेरे देश के संस्कार नही हैं और ना ही किसी भी देश के हो सकता है...फिर ये आया कहाँ से... पता नही ?
मेरा ये मानना है "पंछी चाहे जितनी भी लंबी उड़ान भर ले वापस लौट के घोसले मे जरूर आता है"और आज नही तो कल हम भी लौटेंगे...अपने घरों मे...और शायद उस दीं हम असल मआयनो मे आज़ाद होंगे...

"यादें"

गुजरा है बचपन जहाँ की गली मे,
छूट रही हैं वो गाँव की गलियाँ...
बिताए हैं साथ जिनके प्यारे वो दिन,
छूट रही हैं वो सखियाँ-सहेलियाँ...

सोचा था दिल को मना लेंगे हम,
ना याद करेंगे ये गाँव, ये गलियाँ.......
वो सखियाँ-सहेलियाँ.......
वो बातें......वो अठखेलियाँ........

मगर भूले थे हम कि
यादें..... जो सिर्फ याद आती हैं........
महफिल में, तन्हाई में,
आईने में, परछाईं में,
गमों में, शहनाई में.....

वो गाँव की गलियों की यादें..
वो सखियों-सहेलियों की यादें...
वो प्यार की बातें...
वो सपनो की रातें...
वो दीवाली की मस्ती...
वो होली के रंग...
बिताए दिन जो सखियों के संग...

वो मिट्टी की खुश्बू...
वो खेलों का जादू...
वो किस्से- कहानियाँ...
वो रूठना- मनाना...
वो रेत के घर, वो खुशियों का तराना...

बहुत याद आते हैं हमें
बहुत सताते हैं हमें...
अब हमने जाना
कि इन्हे भूल जाना
मुश्किल नही.... नामुमकिन है

क्यूँ कि..................................
यादें...........याद आती हैं
बातें.......... भूल जाती हैं
यादें............................
यादें............................