गुजरा है बचपन जहाँ की गली मे,
छूट रही हैं वो गाँव की गलियाँ...
बिताए हैं साथ जिनके प्यारे वो दिन,
छूट रही हैं वो सखियाँ-सहेलियाँ...
सोचा था दिल को मना लेंगे हम,
ना याद करेंगे ये गाँव, ये गलियाँ.......
वो सखियाँ-सहेलियाँ.......
वो बातें......वो अठखेलियाँ........
मगर भूले थे हम कि
यादें..... जो सिर्फ याद आती हैं........
महफिल में, तन्हाई में,
आईने में, परछाईं में,
गमों में, शहनाई में.....
वो गाँव की गलियों की यादें..
वो सखियों-सहेलियों की यादें...
वो प्यार की बातें...
वो सपनो की रातें...
वो दीवाली की मस्ती...
वो होली के रंग...
बिताए दिन जो सखियों के संग...
वो मिट्टी की खुश्बू...
वो खेलों का जादू...
वो किस्से- कहानियाँ...
वो रूठना- मनाना...
वो रेत के घर, वो खुशियों का तराना...
बहुत याद आते हैं हमें
बहुत सताते हैं हमें...
अब हमने जाना
कि इन्हे भूल जाना
मुश्किल नही.... नामुमकिन है
क्यूँ कि..................................
यादें...........याद आती हैं
बातें.......... भूल जाती हैं
यादें............................
यादें............................
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