Saturday, April 19, 2008

MUJHKO YAKEEN HAI

मुझको यक़ीन है सच कहती थी
जो भी अम्मी कहती थी
जब मेरे cपन के दिन थे
चाँद मे पारियाँ रहती थी ...

एक वो दिन जब अपनो ने भी हुम्से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाकेह्न बोझ हमारा सहती थी ...

एक वो दिन लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थी ...

एक वो दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थी.. मुझको यक़ीन है...

एक वो दिन जब जागी आँखें दीवारों को तक़ती हैं
एक वो दिन जब शामॉं की भी पलकें भोझल होती थी...

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